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The Oval में सबसे बड़ी Chase की महागाथा, जब गावस्कर ने तोड़ा था अंग्रेज़ों का घमंड…

Sunil Gavaskar at the Oval

द ओवल के एतिहासिक मैदान पर WTC Final 2023 में टीम इंडिया ने 444 रन के टारगेट का पीछा करते हए बुरी तरहं से हथियार डाल दिए। लेकिन इसी मैदान पर लगभग यही टारगेट टीम इंडिया को 1979 में भी मिला था, पर उस वक्त की भारतीय टीम ने अंडरडॉग होते हुए भी जिस बहादुरी से वो टारगेट चेज़ किया था उसकी मिसाल आज भी दी जाती है।

1979 में हुआ ये मैच भारत और इंग्लैंड की बीच सीरीज़ का चौथा मैच था, इंग्लैंड सीरीज़ में 1-0 से आगे था और इंगलिश टीम की कप्तानी उनके सबसे कामयाब कप्तान Michael Brearley के हाथों में थी। इस टीम में डेविड गॉवर, ग्राहम गूच, इयान बॉथम और ज्योफ्री बॉयकॉट जैसे एक से बढकर एक दिग्गज क्रिकेटर खेल रहे थे। इधर टीम इंडिया में भी कपिल देव, सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ और दिलीप वेंगसरकर जैसे दमदार खिलाड़ी शामिल थे, लेकिन इसके बावजूद विदेशी ज़मीन पर टीम इंडिया कमज़ोर ही मानी जा रही थी। चौथे टेस्ट की पहली तीनों पारियों का लेखा जोखा देखेंगे तो आपको यही लगेगा कि वाकई में ये टीम काफी कमज़ोर थी। इस टेस्ट में इंगलैंड ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए पहली पारी में 305 रन का उम्मीद से कम स्कोर खड़ा किया था लेकिन इसके जवाब में टीम इंडिया अपनी पहली पारी में केवल 202 रन का स्कोर ही जुटा सकी। भारत की तरफ से केवल गुंडप्पा विश्वनाथ ही 62 रन की बेहरतीन पारी खेल सके जबकि गावस्कर, वेंगसरकर, यशपाल शर्मा और कपिल देव जैसे खिलाड़ी मिलकर भी इतने रन नहीं बना पाए।

पहली पारी में 103 रन की बढत हासिल करने के बाद इंगलैंड ने अपनी दूसरी पारी में और भी बेहतर प्रदर्शन किया, ज्योफ्री बॉयकॉट के 125 रन की पारी की बदौलत इंगलैंड ने अपनी दूसरी पारी 8 विकेट पर 334 रन बनाकर घोषित कर दी और टीम इंडिया के सामने जीत के लिए एक नामुमकिन सा दिखने वाला 438 रन का पहाड़ जैसा लक्ष्य रख दिया। इंग्लिश टीम के पास अब सीरीज़ को 2-0 से जीतने का सुनहरी अवसर था क्योंकि टीम इंडिया को ऑल ऑऊट करने के लिए इंग्लैंड के पास लगभग डेढ दिन का समय बाकी था। लेकिन इंग्लिश टीम ये नहीं जानती थी कि टीम इंडिया को इतना हल्के में लेना उनको बेहद भारी पड़ने वाला है। पहली पारी में भारत को 202 रन पर समेटने वाली टीम दूसरी पारी में विकेट्स के लिए तरस गई, पहली ही विकेट के लिए टीम इंडिया ने 213 रन की साझेदारी कर डाली हमारे ओपनर्स थे द ग्रेट सुनील गावस्कर और चेतन चौहान।

चेतन चौहान जब 80 रन बनाकर ऑऊट हुए तब तक सुनील गावस्कर अपना 20वां टेस्ट शतक बनाकर क्रिकेट इतिहास में सबसे अधिक शतक जमाने वाले ओपनर बन चुके थे, उन्होने इंगलैंड के ही लेजेंड्री ओपनर सर लेन हटन का 19 शतकों का रिकॉर्ड तोड़ा था, खैर गावस्कर का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। दूसरे विकेट के लिए गावस्कर ने दिलीप वेंगसरकर के साथ 153 रन की सांझेदारी निभाई, दिलीप वेंगसरकर जब 52 रन के निजी स्कोर पर ऑऊट हुए उस वक्त टीम इंडिया का स्कोर था 2 विकेट के नुक्सान पर 366 रन। यहां से भारत को एक एतिहासिक जीत नज़र आ रही थी, साफ नज़र आ रहा था कि टीम इंडिया यहां से 438 रन का टारगेट अचीव कर सकती है बशर्ते हमारे बल्लेबाज़ थोड़ा तेज़ गति से रन बनाएं। असल में जब गावस्कर और वेंगसरकर बल्लेबाज़ी कर रहे थे उसी वक्त टेस्ट मैच की वास्तविक समय सीमा समाप्त हो चुकी थी लेकिन चूंकि यहां मुकाबले का नतीजा निललने की संभावना थी इसलिए यह मैच अंतिम मेंडेटरी 20 ओवर्स के लिए बढा दिया गया था। इन 20 ओवर्स में भारत को जीत के लिए 5.5 की रन रेट से 110 रन और बनाने थे जोकि उस दौर के हिसाब से काफी ऊंची Asking Rate कही जा सकती है, टेस्ट क्रिकेट में तो ये और भी मुशकिल है क्योंकि गेंदबाज़ों के पास बचने के लिए Wide Line बॉलिंग का विकल्प खुला रहता है।

अब सोचिए कहां तो कुछ घंटों पहले इंगलिश टीम सीरीज़ 2-0 से जीत का सपना देख रही थी और कहां अब टेस्ट बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी। खैर यहां से रन गति बढाने के चक्कर में भारत के विकेट गंवाने का सिलसिला शुरू हुआ, 366 के स्कोर पर वेंगसरकर के ऑऊट होने के बाद 367 के स्कोर तक कपिल देव भी चलते बने और 389 रन के योग पर अपने करियर का सबसे यादगार दोहरा शतक बनाने के बाद थके हुए सुनील गावस्कर भी ईयान बॉथम का शिकार बन गए। गावस्कर ने 21 चौकों की मदद से 221 रन की बेमिसाल पारी खेली, एक एसी पारी जिसकी मिसाल आज तक मिलना मुशकिल है। गावस्कर के बाद भी टीम इंडिया ने जीत का प्रयास जारी रखा लेकिन विकेट भी लगातार गिरते रहे यशपाल शर्मा और यजुवेंद्र सिंह को विवादास्पद तरीके से LBW करार दिया गया। पिछली पारी के हीरो गुंडप्पा विश्वनाथ और कप्तान वेंकटराघवन भी कुछ खास नहीं कर सके, बात अब अंतिम ओवर तक पहंच गई थी जहां टीम इंडिया को जीत के लिए 15 रन और बनाने थे जबकि इंगलैंड को जीत के लिए 2 विकेट चाहिये थे। क्रीज़ पर भारत के पुछल्ले बल्लेबाज़ करसन घावरी और भरत रेड्डी मौजूद थे।

आखरी ओवर की पहली 5 बॉल्स पर इन दोनों ने 6 रन और जोड़ते हुए टीम इंडिया का स्कोर 8 विकेट के नुकसान पर 429 रन तक पहुंचा दिया और इसके बाद अंतिम बॉल फेंकी ही नहीं गई क्योंकि यहां से न तो इंगलैंड 2 विकेट ले सकता था और न ही भारतीय बल्लेबाज़ 9 रन बना सकते थे, सो इस तरहं ये एतिहासिक टेस्ट मैच ड्रॉ पर ख़त्म घोषित हुआ और इंग्लिश टीम हार से बचने पर राहत की सांस ले रही थी। माडीया में चर्चा अब इंगलैंड के सीरीज़ जीतने की नहीं थी बल्कि टीम इंडिया के हौंसले और लिटिल मास्टर गावस्कर की ज़ोरदार बल्लेबाज़ी की थी जिन्होने लगभग इंगलैंड के मुंह से सीरीज़ की जीत और अंतिम मैच दोनो छीन लिए थे। सुनील गावस्कर को उनकी शानदार पारी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया और इयान बॉथम को सीरीज़ में बेहतरीन ऑलराऊंड परफॉर्मेंस के लिए मैन ऑफ द सीरीज़ चुना गया। उम्मीद करते है आने वाले समय में मौजूदा टीम इंडिया अपने लेजेंड्स के उस दौर की कहानियों से कुछ सीख ज़रूर हासिल करेगी और भविष्य में इस तरहं से हथियार नहीं डालेगी।

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