बीसीसीआई 7 जुलाई को अपने शीर्ष बोर्ड की बैठक आयोजित करने जा रहा है, जहां वे कई एजेंडों पर चर्चा करेंगे और तीन महीने में शुरू होने वाले आईसीसी विश्व कप 2023 से पहले कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं।
रोजर बिन्नी के नेतृत्व वाले बोर्ड के लिए सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक विदेशी लीग में खेलने के लिए भारतीय खिलाड़ियों के संन्यास लेने के नए चलन पर गौर करना है। ताजा घटनाक्रम में ऐसी खबरें आ रही हैं कि बीसीसीआई विदेशी लीगों में संन्यास ले चुके खिलाड़ियों की भागीदारी को विनियमित करने पर विचार कर रहा है। हाल ही में, अंबाती रायडू ने अपने संन्यास की घोषणा की, लेकिन साथ ही रायडू MLC (मेजर लीग क्रिकेट) में हिस्सा लेने जा रहे हैं, जिससे भारतीय बोर्ड हैरान है। रायडू के अलावा, रॉबिन उथप्पा, यूसुफ पठान और कुछ अन्य खिलाड़ी भी विदेशी लीग्स में खेलते नजर आ चुके हैं, विशेष रूप से, बोर्ड इस प्रवृत्ति को रोकने और एक नया कानून लागू करने पर विचार कर रहा है। जिसके तहत खिलाड़ियों को संन्यास लेने के बाद किसी अन्य विदेशी लीग में खेलने के लिए बीसीसीआई से एक नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना पड़ेगा साथ ही खिलाड़ियों को कुछ सालों की कूलिंग-ऑफ अवधि से भी गुजरना पड़ सकता है।
इन कानूनों को बनाने की असली वजह क्या है ?
बीसीसीआई एक्सपर्ट्स की मानें तो , रिटायरमेंट के बाद खिलाड़ियों के विदेशी लीग्स में खेलने के कानून बनाने के पीछे दो अहम् तर्क दिए जा रहे हैं। पहला ये की कोई भी खिलाड़ी अगर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेता है तो वो बस भारत में घरेलु क्रिकेट खेले, दूसरा भारतीय खिलाड़ियों के दूसरी विदेशी लीग्स में जाने पर उन लीग्स की वैल्यू बढ़ जाती है। आईपीएल की वैल्यू को बनाए रखने का भी भारतीय क्रिकेट बोर्ड विशेष ख्याल रखना चाहता है।
क्या होगा अगर खिलाड़ी इस नियम को ना मानें
अगर कोई भी खिलाड़ी भविष्य में बीसीसीआई से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं लेता है तो उस खिलाड़ी को आने वाले समय में बीसीसीआई के किसी भी सेक्शन का हिस्सा बनने में मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है। संन्यास लेने के बाद अक्सर खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट से किसी ना किसी भूमिका में जुड़ा रहता है, जिसके लिए बीसीसीआई सैलरी देता है।